पितृपक्ष में मां की याद
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हृदय से मां
की तस्वीर मिटती नहीं
घर में अब
मां की आवाज गूंजती नहीं ।
छिप गई है
मां दूर बादलों के पार
निगाहें फिर
भी मां को ढूंढ़ती हैं बार-बार ।
धुआंते चूल्हे
पर खाना बनाती, आंखें पौंछती मां
याद आती है
बहुत, पर अब वो तस्वीर कहां ।
जहां - जहां जाऊं
मां हमेशा साथ होती है
यह अनुभूति
हमेशा मेरा साथ देती है ।
भावों से
भरा भारी मन, क्लांत तन मेरा
स्मरण करता
हूं तब सौम्य, धैर्यवान मुख तेरा
।
चल तो पड़ा
हूं शहर से गांव की ओर
लेकिन नदारद
है वो अधीरता, वो लहू में
जोर ।
¨
के. के.- 100, कविनगर
गाजियाबाद - 201 002
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Mob.No.08447037777
29.09.13
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Wednesday, 2 October 2013
पितृपक्ष में मां की याद
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